बना गुलाब तो कांटे चुभा गया वो इंसान…
जलाया चिराग तो घर ही जला गया वो इंसान…
तम्माम रंग मेरे और सारे ख्वाब मेरे मुझे ये तक मालूम नहीं…
फसाना था या फ़साने बना गया वो इंसान…
मैं किस हवा में उड़ूँ किस फ़िज़ा मैं लेहरूँ…
दुखो के कांटे मेरे रास्ते में बिछा गया वो इंसान…
मेरे लिखने की आदत ने भुला रखा था मुझसे ये सबकुछ…
मिला वो ज़ख़्म इस तरह की फिर याद आ गया वो इंसान…
आज खुल गया ये राज की मतलबी हे ये दुनिया…
और इस मतलबी दुनिया में मेरा तमाशा बना गया वो इंसान…